Friday, December 10, 2010

"देश"

कर्मबोध दायित्व जगाना गीता का उपदेश है.
सत्य अहिंसा का पावनतम शुचि इसका उपदेश है.
जन जन के भाग्योदय हित नवतम इसका उन्मेष है-
रामराज्य के सपनों का वन्दनीय यह देश है ..
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"सरकार"

शासन में जिसके खुशियों का संसार नहीं है.
नीतियों में जिसके पुष्ट जनाधार नहीं है.
जनता की हिफाजत जो करने में हो अक्षम-
वादों से जो मुकर जाय वो सरकार नहीं है ..

Tuesday, October 26, 2010





















वचन देकर कभी तोड़े नहीं जाते
मीत अपने कभी छोड़े नहीं जाते
देखकर तूफ़ान के बदले हुए तेवर
रुख कभी गंतव्य के मोड़े नहीं जाते
--पद्म कान्त शर्मा 'प्रभात'

Monday, September 20, 2010

कुछ मुक्तक

हिन्दी

हिन्दी है राजनीति की शिकार हो गयी।
धारा संविधान की बेकार हो गयी ।
सोते रहे रहनुमा कुर्सी के मोह में--
है राष्ट्रभाषा संसद में लाचार हो गयी ।

हिन्दी का पोर-पोर बिंधा घावों से ।
हो गया आहत ह्रदय बिडम्बनाओं से ।
कलम के सिपाहियों खामोश मत रहो --
है राष्ट्र भाषा सिसक रही वेदनाओं से ।

अखबार

डर जाये जो आतंक से कलमकार नहीं है ।
मोड़े जो मुख सत्य से पत्रकार नहीं है ।
जनता के दुखदर्द को जो लिख नहीं पाया--
हो कुछ भी वो मगर वो अखबार नहीं है ।

Wednesday, June 16, 2010

पद्म कान्त शर्मा "प्रभात"

परिचय से पद्म कान्त शर्मा "प्रभात" हू मै,
कवीता, लेखन, समिक्छा, ओ पत्रकार हू मै.